वो कर्म जो उद्दंड है,
असभ्य है, अशिष्ट है,
तेरे अस्तित्व पर सवाल है।
तो कभी यूँ भी कर कि जवाब बन,
हर प्रहार की ढाल बन,
सिंह की सवार बन,
वो दहाड़ बन, कि सिहर उठे,
हर असुर का संहार कर,
तु ललना है, तु शक्ति है,
तु समर्थ है, सामर्थ्य भी,
वो प्रहार बन जो प्रबल है,
तु उर्जा है, तु जननी है,
जो मां तुझे न समझ सके,
सम्मान तेरा न कर सके,
तु दुर्गा बन, तु प्रचंड बन,
तु काली बन ,तु काल बन
मां बन कर राह दिखा,
हर असुर का दमन कर,
याद कर, सिर्फ जननी नही,
चंडी, चण्डिका और भवानी भी तु।
रमा