आज़ादी के पचहत्तर साल औऱ हमारा राष्ट्रीय ध्वज
-- Devesh Kumar
Tuesday, August 9, 2022
हर देश के कुछ राष्ट्रीय प्रतीक होते हैं, जो इतिहास ,सांस्कृतिक मूल्य औऱ विचारो को प्रदर्शित करते हैं.
राष्ट्रीय ध्वज एक ऐसा ही प्रतीक होता हैं जो देश के लोगो को स्वाभिमान,गर्व और पहचान से जोड़ता हैं.
यह झंडे कोई कपडे का रंगीन टुकड़ा नहीं होता ,यह होता हैं राष्ट्र की आन-बान और शान का प्रतीक .
चलिए जाने अपने देश के झंडे को
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा-झण्डा ऊँचा रहे हमारा
भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है।
इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है, बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाती है.
ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3:2 है. सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें 24-तीलियां होते हैं,यह इस बात प्रतीक है भारत निरंतर प्रगतिशील है| इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है .
भारतीय राष्ट्रध्वज अपने आप में ही भारत की एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाता हुआ दिखाई देता है.
भारतीय राष्ट्र ध्वज का वर्तमान स्वरुप 22-जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक में स्वीकृत किया गया था.
इसे 15- अगस्त 1947 और 26- जनवरी 1950 के दरमियान रास्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया.
पहले राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा साल 1921 में श्री पिंगली वेंकैया ने बनायीं थी .तब इसका रंग तिरंगा न होकर दो रंगो केसरिया और हरा था, बाद में जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चरखा जोड़ा और गांधीजी ने इसमें सफ़ेद रंग का जोड़ने का सुझाव दिया.
तिरंगे से पहले ध्वज के रूप में चार और प्रकार के झंडे इस्तेमाल किया गए थे.
पहला झंडा :- पीले,लाल और हरे रंग का झंडा 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में बागान चौक में फहराया गया था.
दूसरा झंडा:- 1907 में पेरिस में कुछ क्रांतिकारियों के साथ मैडम कामा ने फहराया था इसमें पहले वाले झंडे के रंगो के अलावा सात तारे और एक कमल भी अंकित था.
तीसर झंडा:- सन 1917 में डॉ एनी बेसेन्ट और लोकमान्य तिलक द्वारा फहराया गया ,इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी पत्तिया और 7 तारे थे साथ में बाई ओर यूनियन जैक तथा दायीं ओर अर्धचंद्र ओर सितारा भी अंकित था.
चौथा झंडा:- सन 1921 में कांग्रेस कमिटी के सत्र के दौरान फहराया गया ,यह झंडा श्री पिंगली वेंकैया वाला झंडा था .
बाद में पांचवा झंडा कुछ सुधारो के बाद जो सन २२ जुलाई-1947 को मान्य हुआ वह वर्तमान स्वरुप में हैं.
कौन थे झंडे के डिज़ाइनर पिंगली वेंकैया
पिंगली वेंकैया का जनम २ अगस्त 1876 को हुआ था ,19 वर्ष की उम्र में वह ब्रिटिश आर्मी से जुड़ गए ,ब्रिटिश सेना की तरफ से एंग्लो-बोएर [अफ्रीका] युद्ध के दौरान उनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई थी .
मछलीपत्तनम से स्कूली शिक्षा के बाद सीनियर कैंब्रिज के लिए वे श्रीलंका गए ,भारत लौटने पर रेलवे ओर बेल्लारी में एक सरकारी नौकरी की.उन्हें कई तरह की भाषाओं का ज्ञान था ,वह भूगर्भ शास्त्र में डॉक्टरेट थे.
उन्हें हीरे की खुदाई में महारत हासिल थी इसीलिए उन्हें लोग डायमंड वेंकैया भी बुलाते थे.
उनकी कपास के क्षेत्र में बहुत गंभीर रूचि थी 1906 से 1911 के दरमियान कपास की फसलों पर उनके तुलनात्मक अध्ययन को काफी ख्याति प्राप्त थी.जिसकी वजह से उन्हें पट्टी वेंकैया भी बुलाया जाता था.
यह तो था झंडे के स्वरुप को बनाने वाले का परिचय इसमें एक नाम ऐसा भी आता हैं जिसने आज़ाद भारत का पहला झंडा सिला था . इस झंडे के निर्माण मेरठ के नत्थे सिंह ने किया था .
नत्थे सिंह गाँधी आश्रम मेरठ में काम करते थे .
इनका जनम सन 1925 में हुआ था जिस समय उन्होंने आज़ाद भारत का पहला झंडा सिला उसके पश्चात जीवन पर्यन्त वह तिरंगा ही सिलते रहे.आज भी उनका पूरा परिवार तिरंगा सिलने का काम ही करता हैं .
आज़ाद देश का पहला झंडा बनाने का काम पूरे अनुष्ठान से किया गया था ,झंडा बनाने वाली रात को नत्थे सिंह ने लालटेन की रौशनी में झंडा बनाया था ,लालटेन में पर्याप्त मिटटी का तेल भी नत्थे सिंह के पास नहीं था तो उन्होंने पड़ोसियों से मिटटी का तेल मांग कर लालटेन जलाया .
आज के परिपेक्ष्य में देखे तो यह बहुत बड़ी बात नहीं लगती .
झंडे का सम्मान
•इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रो के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है.
•इस ध्वज को सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए.
•इस ध्वज को भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता.
•किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है.
•राष्ट्रीय ध्वज को तकिये के रूप में या रूमाल के रूप में करने पर निषेध है.
•फूलों की पंखुडियों के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती.
आज आज़ादी के पचहत्तर साल तक आते आते तीन रंगो का यह कपडा लाखो सिपाहियों के बलिदानी रक्त से सिंचित होकर मजबूती से, गर्व से सभी देशवासियों का सीना चौड़ा करता हैं.
चले इस झंडे के इस बलिदानी सफर को नमन करे ओर कृतज्ञ हो उन सभी शहीदों के लिए जिनकी वजह से आप,हम ओर सभी देशवासी एक आज़ाद राष्ट्र में सांस ले रहे हैं.
जय हिन्द !!
देवेश कुमार
निवासी प्रबंधक-कुवैत यूनिट
भारतीय जीवन बीमा निगम [अंतरराष्ट्रीय ]
अस्वीकरण- लेख में वर्णित तथ्य स्वयं तथा पुस्तकों औऱ अन्य स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी से प्रेरित हैं
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